Sunday, June 29, 2008

स्त्री इच्छा और इस्लामी अभिघात

द्वारा डैनियल पाइप्सन्यूयार्क सन्25 मई, 2004http://hi.danielpipes.org/article/3646
मौलिक अंग्रेजी सामग्री: Female Desire and Islamic Traumaहिन्दी अनुवाद - अमिताभ त्रिपाठी



इराक में अबू गरीब जेल के चित्रों ने मुस्लिम विश्व की ऐसी नब्ज को छू लिया है जिसके संबंध में एक विश्लेषक ने यहां तक कहा कि बलात्कार के ये चित्र यदि मुस्लिम देशों में दिख गए तो यह परमाणु धमाके के बराबर होगा . इस अतिवादी प्रतिक्रिया से मुस्लिम और पश्चिम के मध्य सेक्स जैसे मुद्दे पर चर्चा उठ पड़ी है .
स्त्रियों की यौनाकांक्षाओं को लेकर पश्चिम और मुस्लिम विश्व के मध्य व्यापक तौर पर अलग अनुमान हैं. ( मैं यहां फातिमा मरनीशी द्वारा 1975 में लिखी गई पुस्तक Beyond the Veil: Male-Female Dynamics in a Modern Muslim Society के विचार प्रस्तुत कर रहा हूं. )
पश्चिम में अभी बहुत हाल तक अनुमान लगाया जाता था कि यौन उत्तेजना के संबंध में पुरुष और स्त्री का अनुभव बहुत अलग होता है.पुरुष स्त्री पर बहुत हावी रहते हैं ...उत्तेजित करते हैं और लिंग का प्रवेश उनकी योनि में कराते हैं जबकि स्त्री निष्क्रिय रहकर सबकुछ सहती रहती है.अभी कुछ समय पूर्व ही यह विचार प्रभावी हुआ कि स्त्रियों की भी कामेच्छा होती है .
पुरानी परंपराओं की प्रतिष्ठा वाले मुसलमानों के संबंध में यह व्यंग्य ही है कि इस्लामी सभ्यता न केवल महिलाओं को आकांक्षा रखने वाली के रुप में चित्रित करती है वरन् पुरुषों से अधिक जुनूनी मानती है .निश्चित रुप से इसी समझ ने परंपरागत मुस्लिम जीवन में महिलाओं का स्थान निर्धारित किया है .
इस्लामिक विचार में पुरुष और स्त्री दोनों संभोग करते हैं और इस दौरान दोनों के शरीर एक साथ एक समान प्रक्रिया और आनंद से गुजरते हैं.यदि परंपरागत रुप से पश्चिमी यौन क्रिया को एक युद्ध का मैदान मानते हैं जहां पुरुष स्त्री पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करता है वहीं मुसलमान इसे औपचारिक और मिलकर बांटने वाला आनंद मानते हैं.
वास्तव में मुसलमान सामान्य रुप से विश्वास करते हैं कि स्त्री इच्छा पुरुष की अपेक्षा इतनी प्रबल है कि स्त्री को शिकारी माना जाता है और पुरुष को उसका शिकार .यदि मुसलमान यौन क्रिया को लेकर कुछ बेचैन रहते होते हैं तो वे स्त्री द्वारा प्रस्तुत किये खतरे से चिपके हुए हैं . ऐसा माना जाता है कि उसकी आवश्यकतायें इतनी मजबूत हैं कि उसे अंत में अव्यवस्था और अतार्किक शक्ति का प्रतिनिधि माना जाता है .एक स्त्री की तीव्रतम इच्छा और असंवरणीय आकर्षण उसे पुरुष से अधिक शक्ति प्रदान करते हैं जिससे वह ईश्वर से भी प्रतिस्पर्धा स्थापित कर सकती है .उसे रोका जाना चाहिए क्योंकि उसकी अनियंत्रित कामेच्छा सामाजिक व्यवस्था के समक्ष एक सीधा खतरा उत्पन्न करती है .इसका प्रतीक अरबी का शब्द “ फितना है ” जिसका अर्थ सुन्दर महिला और सामाजिक अव्यवस्था दोनों है.
मुसलमानों की समस्त सामाजिक व्यवस्था स्त्री की कामेच्छा को सीमित करने वाली समझी जा सकती है . यह विपरीत लिंगियों को अलग कर उनके मध्य संपर्कों को कम करता है . इस विचार के आधार पर महिलाओं के चेहरे को ढंकना और महिलाओं के आवासीय क्षेत्रों(हरम) को अलग-अलग करने की व्याख्या की जा सकती है . अनेक अन्य संस्थायें भी पुरुष की अपेक्षा स्त्री के अधिकार को कम करती हैं जैसै यात्रा, कार्य , विवाह के लिए पुरुष के आदेश की आवश्यकता होती है . सच तो यह है कि परंपरागत मुस्लिम विवाह दो पुरुषों वर और वधू के अभिभावकों के बीच संबंध है . यहां तक प्रयास होता है कि युगल का आपसी जुड़ाव नहीं होना चाहिए . इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कि अपनी पत्नी के प्रति भावनात्माक संबंध जोड़कर ईश्वर के प्रति अपने कर्तव्यों की अवहेलना न करें, मुस्लिम पारिवारिक जीवन दंपत्ति के कर्तव्यों और रुचियों को विभाजित कर उनके संबंधों का संतुलन बिगाड़ दिया जाता है ( वह अपने पति की सहयोगी की बजाए नौकर होती है ) और वैवाहिक संबंधों के उपर माता –पुत्र के संबंध को प्राथमिकता दी जाती है. कुल मिलाकर मुसलमान स्त्री पुरुष संबंधों के पूर्व आधुनिक समय के इस्लामी विचारों के साथ जुड़ते हैं. तो भी यह बैचैनी व्याप्त रहती है कि महिलायें अपने प्रतिबंधों से आगे आ जायेंगी और समुदाय के लिए रास्ता खोल देंगी .
वर्तामान शताब्दियों में मुस्लिम विश्व में पश्चिमी प्रभाव के विस्तार के चलते जहां पश्चिमी रास्ते प्राय: इस्लामी रास्तों से टकराते हैं यह बेचैनी कई गुणा बढ़ गई है .कानूनी समानता , रोमांटिक प्रेम , एक विवाह , खुले यौन संबंध सहित अनेक अनगिनत परंपराओं के माध्यम से प्राप्त स्त्रियों की स्वतंत्रता के चलते ये दोनों सभ्यतायें विभाजित है. इसके परिणाम स्वरुप प्रत्येक सभ्यता को दूसरी सभ्यता बर्बर नहीं तो कमियों से भरपूर अवश्य लगती है .
बहुत से मुसलमानों के लिए पश्चिम केवल काफिरों के बाहरी आक्रमण का खतरा उत्पन्न नहीं करता वरन् यह स्त्री के प्रति पारंपरिक व्य्वहार को क्षीण कर आन्तरिक खतरा भी उत्पन्न करता है . इससे अपनी पुरानी परंपराओं पर पश्चिमी मार्ग अपनाने की प्राथमिकता की व्यापक चिंता का मार्ग प्रशस्त होता है .यौनेच्छा के संबंध में भिन्नता वास्तव में आधुनिकता को न अपनाने की मुस्लिम मानसिकता में योगदान ही देती है . पश्चिम के कामुक रास्तों से मुस्लिम जनता का भय राजनीतिक आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में तनाव का रुप भी ले लेता है . आधुनिक युग में इस्लामी अभिघात का प्रभुख कारण यौनेच्छा संबंधी आशंका है .
फ्रांस में कक्षाओं में छात्राओं का स्कार्फ पहनना , जार्डन में परिवार के सम्मान के लिए स्त्री की हत्या , सउदी अरब में महिला चालक और अबू गरीब जेल के वे चित्र इस विषय विशेष की संवेदनशीलता की व्याख्या ही करते हैं .

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